Thursday, April 24, 2014

किसी मित्र ने व्हाटसप में वीडियो भेजा
बनारस का परिदृश्य
आँखों सामने घूमने लगा
गुर्राता भय का प्रतीक
ललकारता भयहीन
 ठिठका सहमा सूर्य
कोलाहल
युद्धपूर्व
गगनभेदी नारे
अनुपस्थित सूर्य
अँधेरे का आलम
भय से सहमा
बनारस
सुबह का इंतजार
अँधेरे में महादेव
खो गए
चिंतक और बुद्धिजीवी
सो  गए
चाटुकारो की जमात में
मोदी
हर हर मोदी
या मोदी सर्वभूतेशु हो गए
भय से सहमा
बनारस
सुबह का इंतजार है
सत्य ने बांग दी कोलाहल
को चीर कर
भय हटने लगा
अँधेरा छटने  लगा
बनारस की धरती पर
देखो पौ फटने लगा
इक़बाल सिंह


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