बनारस का परिदृश्य
आँखों सामने घूमने लगा
गुर्राता भय का प्रतीक
ललकारता भयहीन
ठिठका सहमा सूर्य
कोलाहल
युद्धपूर्व
गगनभेदी नारे
अनुपस्थित सूर्य
अँधेरे का आलम
भय से सहमा
बनारस
सुबह का इंतजार
अँधेरे में महादेव
खो गए
चिंतक और बुद्धिजीवी
सो गए
चाटुकारो की जमात में
मोदी
हर हर मोदी
या मोदी सर्वभूतेशु हो गए
भय से सहमा
बनारस
सुबह का इंतजार है
सत्य ने बांग दी कोलाहल
को चीर कर
भय हटने लगा
अँधेरा छटने लगा
बनारस की धरती पर
देखो पौ फटने लगा
इक़बाल सिंह
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