सिहासन खाली करो
देखो जनता आती है
रामधारी सिंह दिनकर
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है दिनकर
जयप्रकाश नारायण
ने जब रामलीला मदन मे इन पंक्तियों से
हुंकार भरी
डोला सिहांसन इंदिरा का
आपत्काळा कि चाल चली
शाशन बदला
सत्ता बदली
चेहरे बदले
काया बदली
फिर इंद्रा क शासन आया
अब तक है
जिसकी
काली छाया
क्यो
जनता?हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही,(१)
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली। -(४)१से ४ दिनकर
देहली मे
शीला चित पडी
अौंधे मुंह भजपा मिलीं
क्यो
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,(१)
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है - (४)१से ४ दिनकर
जयप्रकाश के बाद केजरीवाल
प्रबल शक्तिसमरथ
शत्रु के घेरे से
पुनः
शंखनाद किया
है
योद्धा ने
सिहासन खाली करो
देखो जनता आती है
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,(१)
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है। -(४)१से ४ दिनकर
काल चक्र मे
अंकित होगा
अब नया इतिहास
बनारस का उगता सूरज
साक्छी होगा
दिनकर कि हुंकार
में
छुपा
स्वप्न
सत्य होगा
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,(१)
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।(४)१से ४ दिनकर
इक़बाल सिंह -
देखो जनता आती है
रामधारी सिंह दिनकर
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है दिनकर
जयप्रकाश नारायण
ने जब रामलीला मदन मे इन पंक्तियों से
हुंकार भरी
डोला सिहांसन इंदिरा का
आपत्काळा कि चाल चली
शाशन बदला
सत्ता बदली
चेहरे बदले
काया बदली
फिर इंद्रा क शासन आया
अब तक है
जिसकी
काली छाया
क्यो
जनता?हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही,(१)
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली। -(४)१से ४ दिनकर
देहली मे
शीला चित पडी
अौंधे मुंह भजपा मिलीं
क्यो
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,(१)
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है - (४)१से ४ दिनकर
जयप्रकाश के बाद केजरीवाल
प्रबल शक्तिसमरथ
शत्रु के घेरे से
पुनः
शंखनाद किया
है
योद्धा ने
सिहासन खाली करो
देखो जनता आती है
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,(१)
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है। -(४)१से ४ दिनकर
काल चक्र मे
अंकित होगा
अब नया इतिहास
बनारस का उगता सूरज
साक्छी होगा
दिनकर कि हुंकार
में
छुपा
स्वप्न
सत्य होगा
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,(१)
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।(४)१से ४ दिनकर
इक़बाल सिंह -
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