Tuesday, April 29, 2014

वारणसी के युद्ध में केजरीवाल
प्रतिदिन होने वाले हमलो के संदर्भ में
कैसा चिटक रहा
गर्म लोहा
पानी के छीटों  से
कैसे तुफानो को
पेड़ो ने रोका है
गरजते नगाड़ो से
चिड़िआ उड़ गयी
मधुर बांसुरी ने गौओ
को रोका है
कोलाहल कोलाहल
बोल कुबोल
मेला है ठेला है
अर्थहीन जोश है
झूठने सच को
चहु और घेरा है
मुक्के से धुमुक्के से
कोहनी से लात से
अंतहीन प्रहार से
झूट ने सच को
चहुँ और घेरा है 
महादेव  की नगरी
गंगा का आँगन
असि घाट पर
शांत  बैठा
 एक मानव
देख रहा
लहरो से
टकराते घाट को
शिव   की शरण
मंदिर में
 दिआ 
बाहर अँधेरे के अट्ठास को
टिमटिमाते प्रकाश
का संघर्ष
सत्य पर शिव का
वरद हस्त
उठा निर्णय के साथ
चल पड़ा वाराणसी
की सड़को में
अनंत प्रहारों के
बीच
बेखौफ
सत्य मेव जयते
सत्य मेव जयते
इक़बाल सिंह


No comments:

Post a Comment